
🥇समास और समास विग्रह (Samas aur Samas vigrah)🥇
समास
परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्द मिलकर जब एक नया सार्थक शब्द बनाते हैं, तब उस विकार रहित मेल को समास कहते हैं।
समास का शाब्दिक अर्थ है – संक्षेप।
परिभाषा- विभिन्न पदों का एक पद में सम्यक्निक्षेप करने की प्रक्रिया को समास कहते हैं।
👉 समास बनाने की प्रक्रिया में कारक चिन्ह्नों, परसर्गों या योजक चिन्ह्नों का लोप हो जाता है।
👉 सामासिक पद को विखण्डित करने की क्रिया को विग्रह कहते हैं।
👉 समास रचना में प्रायः दो पद होते हैं। पहले पद को पूर्वपद और दूसरे को उत्त्रपद कहते हैं
👉 जैसे-‘राजपुत्र’ में पूर्वपद ‘राज’ है और उत्त्रपद ‘पुत्र’ है।
समास के भेद
समास के छह मुख्य भेद हैं–
1️⃣ अव्ययीभाव समास
2️⃣ तत्पुरूष समास
3️⃣ कर्मधारय समास
4️⃣ द्विगु समास
5️⃣ द्वन्द्व समास
6️⃣ बहुव्रीहि समास।
पदों की प्रधानता के आधर पर वर्गीकरण
पूर्व पद प्रधान — अव्ययीभाव
उत्त्र पद प्रधान — तत्पुरूष, कर्मधारय व द्विगु
दोनों पद प्रधान — द्वन्द्व
दोनों पद अप्रधान — बहुब्रीहि ‘इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है।’
1️⃣ अव्ययीभाव समास
अव्ययीभाव समास– जिस समास का पहला पद अव्यय हो और जिससे बना समस्त पद क्रिया विशेषण की तरह प्रयुक्त हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
अव्ययीभाव शब्द का अर्थ है- जो अव्यय न हो।
पहला पद प्रधान तथा समस्त पद अव्यय का काम करता है।
एक साथ ही किसी शब्द का दो बार प्रयोग करने से भी अव्ययीभाव समास होता है( जैसे- दिनों-दिन, धीरे-धीरे, पहले-पहल, धड़ा-धड़।
पूर्वपद- अव्यय + उत्त्रपद = समस्तपद विग्रह
1. यथा + शक्ति = यथाशक्ति शक्ति के अनुसार
2. आ + जीवन = आजीवन जीवन पर्यन्त
3. भर + सक = भरसक शक्तिभर
4. एका + एक = एकाएक अचानक
5. प्रति + पल = प्रतिपल प्रत्येक पल
6. हर + रोज =हररोज प्रतिदिन
2️⃣ तत्पुरूष समास
तत्पुरूष समास– जिस समास में उत्त्र पद ‘बाद का’ प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच के कारक-चिन्हों का लोप हो जाता है। उसे तत्पुरूष समास कहते है( जैसै- राजकन्या – राजा की कन्या, चिड़ीमार – चिड़ियों को मारने वाला, सत्यपालन – सत्य का पालन, रचनाकार – रचना को करने वाला।
तत्पुरूष समास के भेद — तत्पुरूष समास के छह भेद विभक्तियों के आधर पर किए गए हैं।
(I) कर्म तत्पुरूष ‘द्वितीय तत्पुरूष’- इसमें कर्मकारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
1. यशप्राप्त यश को प्राप्त
2. ग्रंथकार ग्रंथ को करने वाला
3. कष्टापन्न कष्ट को प्राप्त
4. जेबकतरा जेब को कतरने वाला
5. कोशकार कोश को करने वाला
6. चिड़ीमार चिड़ियों को मारने वाला
(II) करण तत्पुरूष ‘तृतीया तत्पुरूष’ – इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
1. कष्टसाधय कष्ट से साधय
2. हस्तलिखित हाथ से लिखा हुआ
3. मदमाता मद से माता
4. शोकाकुल शोक से आकुल
5. गुणहीन गुणों से हीन
6. तुलसीकृत तुलसी द्वारा कृत
(III) सम्प्रदान तत्पुरूष ‘चतुर्थी तत्पुरूष’ – इसमें सम्प्रदाय कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
1. बलिपशु बलि के लिए पशु
2. गुरूदक्षिणा गुरू के लिए दक्षिणा
3. विद्यालय विद्या के लिए आलय
4. न्यायालय न्याय के लिए आलय
5. देशभक्ति देश के लिए भक्ति
6. घुड़साल घोड़ों के लिए शाला
(IV) अपादान तत्पुरूष ‘पंचमी तत्पुरूष’ – इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ ‘अलग होने का भाव’ लुप्त हो जाती है( जैसे-
सामाजिक पद विग्रह
1. धर्मभ्रष्ट धर्म से भ्रष्ट
2. सेवामुक्त सेवा से मुक्त
3. कामचोर काम से जी चुराने वाला
4. शक्तिहीन शक्ति से हीन
5. भयभीत भय से भीत
6. रणविमुख रण से विमुख
(V) संबंध तत्पुरूष ‘षष्ठी तत्पुरूष’ – इसमें संबंध कारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ का लोप हो जाता है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
1. राष्ट्रपति राष्ट्र का पति
2. राजकुमारी राजा की कुमारी
3. दीनबंधु दीन के बन्धु
4. माधव मा ‘लक्ष्मी’ का धव ‘पति’
5. त्रिपुरारि त्रिपुर का अरि
6. रामोपासक राम का उपासक
(VI) अधिकरण तत्पुरूष ‘सप्तमी तत्पुरूष’ – इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ का लोप हो जाता है( जैसे-
सामाजिक पद विग्रह
1. कविश्रेष्ठ कवियों में श्रेष्ठ
2. नरोत्त्म नरों में उत्त्म
3. शोकमग्न शोक में मग्न
4. आपबीती अपने पर बीती
5. हरुनमौला हरुन में मौला
6. कविपुगव कवियों में पुंगव
नञ् समास – नञ् समास तत्पुरूष समास का ही एक भेद है। जिस समास के पूर्व पद में निषेध सूचक/नकारात्मक शब्द ‘अ, अन्, न, ना, गैर आदि’ लगे हों- जैसे- अनीति ‘न नीति’, अधर्म ‘न धर्म’, अनन्त ‘न अन्त’, अनपढ़ ‘न पढ़’ नापसन्द ‘न पसन्द’ गैरवाजिब ‘न वाजिब’ आदि।
3️⃣ कर्मधारय समास
- कर्मधारय समास– जिस समास के दोनों पदों में विशेष्य-विशेषण या उपमेंय-उपमान सम्बन्ध हो तथा दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति आये उसे कर्मधारय समास कहते है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
- 1. नीलोत्पल नीला है जो उत्पल
- 2. सज्जन सत्है जो जन
- 3. कटूक्ति कटु है जो उक्ति
- 4. परमौषध परम है जो औषध
- 5. कनकलता कनक के समान रंग वाली लता
- 6. अधार पल्लव पल्लव जैसे है जो अधार
4️⃣ द्विगु समास
द्विगु समास — जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है। इसमें समूह या समाहार का ज्ञान होता है
( जैसे-
समासिक पद विग्रह
1. द्विगु दो गायों का समाहार
2. सतसई सात सौ छन्दों का समाहार
3. त्रिवेणी तीन नदियों ‘गंगा, यमुना, सरस्वती’ का समाहार
4. अष्टाध्यायी आठ अध्यायों का समाहार
5. शताब्दी सौ वर्षों का समय ‘समूह’
6. नवरात्र नौ रात्रियों का समूह
5️⃣ द्वन्द्व समास
द्वन्द्व समास — द्वन्द्व का शाब्दिक अर्थ है- युग्म या जोड़ा। इस समास में दो पद होते हैं तथा दोनों पदों की प्रधानता होती है। इनका विग्रह करने पर बीच में समुच्चय बोधक संयोजक ‘और, एवं, तथा’ अथवा विकल्पवाचक संयोजक ‘या, अथवा’ लगते हैं ( जैसे-
पहचान — दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिन्ह्न ‘-’ का प्रयोग।
सामासिक पद विग्रह
1. वेद-पुराण वेद और पुराण
2. चमक-दमक चमक और दमक
3. राग-द्वेष राग या द्वेष
4. नर-नारी नर और नारी
5. हरिशंकर हरि और शंकर
6. देवासुर देवता और असुर
6️⃣ बहुव्रीहि समास
बहुव्रीहि समास– जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुव्रीहि समास होता है( जैसे-
सामासिक पद विग्रह
1. दशानन दश है आनन जिसके अर्थात् ravan
2. चन्द्रमौलि चन्द्रमा है मौलि ‘मस्तक’ पर जिनके अर्थात शंकर जी
3. प्रधानमंत्री मंत्रियों में प्रधान है जो ‘प्रधानमंत्री’
4. पंकज पंक में पैदा हो जो ‘कमल’
5. सबल बल के साथ है जो वह ‘शक्तिशाली’
6. उदारचेता उदार है चित्त् जिसका वह
(Samas aur Samas vigrah)
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अन्तर
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अन्तर– इन दोनों समासों में अन्तर विग्रह के आधर पर होता है( कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है( जैसे- ‘नीलकमल’ में ‘नील’ विशेषण है तथा ‘कमल’ विशेष्य है। अतः इसमें कर्मधारय समास है।
बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है( जैसे- ‘त्रिनेत्र’ तीन है नेत्र जिसके वह अर्थात शंकर जी ।
इसका विग्रह शब्दात्मक न होकर वाक्यात्यमक होता है।
Samas aur Samas vigrah
द्विगु और बहुव्रीहि समय में अन्तर
द्विगु और बहुव्रीहि समय में अन्तर– द्विगु समास में पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है जबकि बहुब्रीहि में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है( जैसे- चतुर्भुज- चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात् विष्णु – बहुव्रीहि चतुर्भुज- चार भुजाओं का समूह — द्विगु समास
द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है। द्विगु का पहला पद ही विशेषण बनकर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता, कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है( जैसे-
त्रिभुवन- तीन भुवनों का समूह — द्विगु समास
नीलगाय- नीली है जो गाय — कर्मधारय
पंचतत्व- पांच तत्वों का समूह — द्विगु समास
शुभागमन- शुभ है जो आगमन — कर्मधारय
समास विग्रह
समास विग्रह
सामासिक पद विग्रह समास
अजन्मा न जन्मा नञ्
अठन्नी आठ आनों का समाहार द्विगु समास
अनेक न एक नञ्
अनाम नाम से हीन अव्ययी भाव
अनुचित न उचित नञ्
अपवित्र न पवित्र नञ्
अलौकिक न लौकिक नञ्
अनजाने बिना जाने हुए अव्ययी भाव
अकाल अकाल से पीड़ित करण तत्पुरूष
अनुकूल कुल के अनुसार अव्ययी भाव
अनुरूप रूप के जैसा अव्ययी भाव
आमरण मरण पर्यन्त अव्ययी भाव
आजन्म जन्म पर्यन्त अव्ययी भाव
आराम कुर्सी आराम के लिए कुर्सी सम्प्रदान तत्पुरूष
आत्म विश्वास आत्म ‘अपने’ पर विश्वास अधिकरण तत्पुरूष
आलू-गोभी आलू और गोभी द्वन्द्व समास
आशालता आशा रूपी लता कर्मधारय
आसमुद्र समुद्र पर्यन्त अव्ययीभाव
आकाशवाणी आकाश से वाणी पंचमी तत्पुरूष
आनन्दाश्रम आनन्द का आश्रम षष्टी तत्पुरूष
इकलौता एक मात्र पुत्र द्विगु
उपकूल कूल के निकट अव्ययी भाव
एकतारा एक तार वाला वाद्य द्विगु
कपड़छन कपडे़ से छाना हुआ करण तत्पुरूष
कृष्णार्पण कृष्ण के लिए अर्पण सम्प्रदान तत्पुरूष
कमलनयन कमल के समान नेत्र कर्मधारय
कुसुमकोमल कुसुम के समान कोमल कर्मधारय
कापुरूष कायर है जो पुरूष कर्मधारय
कपडे़-लत्ते कपडे़ और लत्ते द्वन्द्व
कागज-पत्र कागज और पत्र द्वन्द्व
कुम्भकार कुम्भ को करने ‘बनाने’ वाला तत्पुरूष
काव्यकार काव्य की रचना करने वाला तत्पुरूष
कृषिप्रधान कृषि में प्रधान सप्तमी तत्पुरूष
कपोतग्रीवा कपोत के समान ग्रीवा कर्मधारय
खगेश खगों का ईश है जो वह, गरूड़ बहुब्रीहि
खाद्यान्न खाद्य है जो अन्न कर्मधारय
गजानन गज के समान मुख वाले अर्थात् गणेशजी बहुब्रीहि
गिरिधर गिरि को धारण करने वाले अर्थात् श्रीकृष्ण बहुब्रीहि
गौरीशंकर गौरी और शंकर द्वन्द्व
गंगा-यमुना गंगा और यमुना द्वन्द्व
गंगाजल गंगा का जल षष्ठमी तत्पुरूष
गगनांगन गगन रूपी आंगन कर्मधारय
गगनचुम्बी गगन को चूमने वाला द्वितीय तत्पुरूष
गाड़ी-घोड़ा गाड़ी और घोड़ा द्वन्द्व
ग्रामोद्धार ग्राम का उद्धार षष्ठमी तत्पुरूष
गुरूदेव गुरू रूपी देव कर्मधारय
गोदान गाय का दान सम्बन्ध तत्पुरूष
गिरहकर गिरह को काटने वाला द्वितीय तत्पुरूष
गुरूसेवा गुरू की सेवा षष्ठ तत्पुरूष
गोपाल गौ का पालन जो करे वह अर्थात श्री कृष्ण बहुब्रीहि
गृहस्थ गृह में स्थित उपपद तत्पुरूष
घुड़दौड़ घोड़ों की दौड़ सम्बन्ध तत्पुरूष
घनश्याम घन के समान श्याम, घन के समान है जो वह अर्थात श्री कृष्ण बहुब्रीहि
घी-शक्कर घी और शक्कर द्वन्द्व
घास-फ़ूस घास और फ़ूस द्वन्द्व
घर-द्वार घर और द्वार द्वन्द्व
चौकोर चार कोनों वाली आकृति द्विगु
चतुर्वेदी चारों वेदों का समूह द्विगु
चौपाई चार चरणों के समाहार वाला छन्द द्विगु
चतुष्पदी चार चरणों वाला छन्द द्विगु
चवन्नी चार आनों का समाहार द्विगु
चौराहा चार रास्तों का समाहार द्विगु
चौमासा वर्षा के चार मासों का समाहार द्विगु
चन्द्रभाल चन्द्र है भाल पर जिसके वह अर्थात शंकरजी बहुव्रीहि
चन्द्रशेखर चन्द्रमा है शिखर पर जिनके अर्थात शिवजी बहुव्रीहि
चतुर्भुज चार है भुजायें जिनके अर्थात विष्णु बहुव्रीहि
चतुर्मुख चार है मुख जिसके अर्थात ब्रह्माजी बहुव्रीहि
चतुरानन चार है आनन ‘मुख’ जिसके वह अर्थात ब्रह्माजी बहुव्रीहि
चक्रधर चक्र को धारण करने वाला अर्थात विष्णु बहुव्रीहि
चक्रपाणि चक्र को पाने ‘गृहण करना’ वाला अर्थात विष्णु बहुव्रीहि
चन्द्रोदय चन्द्रमा का उदय षष्ठी तत्पुरूष
चन्द्रबदन चन्द्रमा के समान बदन कर्मधारय
चरणकमल कमल के समान चरण कर्मधारय
चौपाया चार पांव वाला द्विगु
छोटा-बड़ा छोटा या बड़ा द्वन्द्व
जला-भुना जला और भुना द्वन्द्व
जीव-जन्तु जीव और जन्तु द्वन्द्व
जितेन्द्रिय जीत ली है इन्द्रियाँ जिसने वह अर्थात मुनि बहुव्रीहि
जेबखर्च जेब के लिए खर्च सम्प्रदान तत्पुरूष
जलासिक्त जल से सिक्त करण तत्पुरूष
जलद जल देता है जो वह, बादल बहुव्रीहि
जलज जल में उत्पन्न होता है वह, अर्थात शिवजी बहुव्रीहि
जन्मान्ध जन्म से अन्धा तृतीया तत्पुरूष
जीवनमुक्त जीवन से मुक्त अपादान तत्पुरूष
जेबघड़ी जेब के लिए घड़ी सम्प्रदान तत्पुरूष
ठकुरसुहाती ठाकुर ‘मालिक’ के लिए रूचिकर बातें सम्प्रदान तत्पुरूष
तिलपापड़ी तिल से बनी पापड़ी कर्मधारय
तिलचट्टा तिल से चाटने वाला कर्मधारय
दशमुख दस हैं मुख जिसके अर्थात रावण बहुव्रीहि
दिगम्बर दिक् है अम्बर जिसका वह अर्थात शिव जी बहुव्रीहि
दुसूती दो सूतों का समूह द्विगु
दोपहर दो प्रहरों का समाहार द्विगु
द्विवेदी दो वेदों का समाहार द्विगु
दुधारी दो धारों वाली द्विगु
दुरंगी दो रंगो वाली द्विगु
दोराहा दो राहों का समाहार द्विगु
दूध-दही दूध और दही द्वन्द्व
दाल-भात दाल और भात द्वन्द्व
देश-विदेश देश और विदेश द्वन्द्व
दहीबड़ा दहीं में भिगोया बड़ा मधयमपदलोपी
दानवीर दान में वीर अधिकरण तत्पुरूष
दिनानुदिन दिन प्रतिदिन अव्ययी भाव
दुःखसंतप्त दुःख से संतप्त करण तत्पुरूष
देशनिकाला देश से निकाला अपादान तत्पुरूष
देशगत देश को गया हुआ कर्म तत्पुरूष
धनहीन धन से हीन ‘रहित’ अपादान तत्पुरूष
धर्मच्युत धर्म से च्युत अपादान तत्पुरूष
धर्माधर्म धर्म और अधर्म द्वन्द्व
धर्मविमुख धर्म से विमुख अपादान तत्पुरूष
धनुर्वाण धनुष और वाण द्वन्द्व
निधड़क बिना धड़क के अव्ययी भाव
निडर बिना डर के अव्ययी भाव
निश्चित चिन्ता से रहित अव्ययी भाव
निर्विवाद विवाद से रहित अव्ययी भाव
नित्य प्रति प्रतिदिन अव्ययी भाव
नेत्रहीन नेत्र से रहित ‘हीन’ अपादान तत्पुरूष
नराधम नरों में अधम अधिकरण तत्पुरूष
नीलकमल नीला हैं जो कमल कर्मधारण
नीलाम्बर नीला है जो अम्बर कर्मधारय
नीलगाय नीली है जो गाय कर्मधारय
नवयुवक नव है जो युवक कर्मधारय
नवरत्न रत्न है जो नर कर्मधारय
नवरत्न नौ रत्न का समूह द्विगु
नवग्रह नौ ग्रहों का समाहार द्विगु
नोन-तेल नमक और तेल द्वन्द्व
प्रतिदिन दिन-दिन अव्ययी भाव
प्रतिक्षण क्षण-प्रतिक्षण अव्ययी भाव
प्रत्येक प्रति एक ‘एक-एक’ अव्ययी भाव
पल-पल हर पल अव्ययी भाव
पदच्युत पद से च्युत अपादान तत्पुरूष
पथभ्रष्ट पथ से भ्रष्ट अपादान तत्पुरूष
पापमुक्त पाप से मुक्त अपादान तत्पुरूष
पवनपुत्र पवन के पुत्र सम्बन्ध तत्पुरूष
पराधीन पर के आधीन सम्बन्ध तत्पुरूष
पुरूषोत्त्म पुरूषों में उत्त्म अधिकरण तत्पुरूष
पुरूषरत्न रत्न सदृश है जो पुरूष कर्मधारय
परमेश्वर परम है जो ईश्वर कर्मधारय
पीताम्बर पीले है वस्त्र जिसके अर्थात विष्णु बहुव्रीहि
पंचानन पाँच है मुख जिसके अर्थात शिव जी बहुव्रीहि
पंचवटी पाँच वट वृक्षों का समूह द्विगु
पंसेरी पाँच सेरों ‘तौल की मात्र’ का समुह द्विगु
पंचतत्व पाँच तत्वों का समूह द्विगु
पंचामृत पाँच अमृतों का समाहार द्विगु
पंचाधयायी पाँच अधयायों का समाहार द्विगु
पंचांग पाँच अंगो का समाहार द्विगु
पंचपात्र पाँच पात्रें का समाहार द्विगु
पाप-पुण्य पाप और पुण्य द्वन्द्व
पकौड़ी पकी हुई बड़ी मध्यम पद लोपी
पददलित पद से दलित करण तत्पुरूष
परीक्षापयोगी परीक्षा के लिए उपयोगी सम्प्रदान तत्पुरूष
पादप पैरों से पीने वाले उपपद तत्पुरूष
पुत्रशोक पुत्र के लिए शोक सम्प्रदान तत्पुरूष
पुस्तकालय पुस्तक का आलय ‘घर’ सम्बन्ध तत्पुरूष
बेकाम काम के रहित अव्ययी भाव
बेदीन दीन ‘धर्म’ से रहित अव्ययी भाव
बेनाम नाम से रहित अव्ययी भाव
बारम्बार बार-बार अव्ययी भाव
बलहीन बल से रहित अपादान तत्पुरूष
बेखटके खटका ‘चिन्ता’ से रहित अव्ययी भाव
बजरंगी व्रज जैसे है अंग जिसके वह, अर्थात हनुमान जी बहुव्रीहि
भला-बुरा भला और बुरा द्वन्द्व
भाई-बहिन भाई और बहिन द्वन्द्व
भरण-पोषण भरण और पोषण द्वन्द्व
भवसागर भव रूपी सागर कर्मधारय
भलामानस भला है जो मानस कर्मधारय
मदोन्मत मद से उन्मत करण तत्पुरूष
मुँहमाँगा मुख से माँगा हुआ करण तत्पुरूष
मेघाच्छन्न मेघ से अच्छन्न करण तत्पुरूष
मार्ग व्यय मार्ग के लिए व्यय सम्प्रदान तत्पुरूष
मालगाड़ी माल के लिए गाड़ी सम्प्रदान तत्पुरूष
महाजन महान है जो जन कर्मधारय
महादेव महान है जो देव कर्मधारय
मोदकप्रिय मोदक है प्रिय जिसका वह अर्थात गणेश जी बहुव्रीहि
माता-पिता माता और पिता द्वन्द्व
मार-पीट मारना और पीटना द्वन्द्व
मनमौजी मन से मौजी करण तत्पुरूष
मनगढ़न्त मन से गढ़ा हुआ करण तत्पुरूष
महाशय महान आशय कर्मधारय
महारानी महती रानी कर्मधारय
मालगोदाम माल के लिए गोदाम सम्प्रदान तत्पुरूष
मुरलीधर मुरली को धारण करने वाला अर्थात् श्री कृष्ण बहुव्रीहि
मृगनयन मृग के सामन नयन कर्मधारय
यथावधिा अवधिा के अनुसार अव्ययी भाव
यथासाधय साधय के अनुसार अव्ययी भाव
यथाक्रम क्रम के अनुसार अव्ययी भाव
यथानुरूप अनुरूपता के अनुसार अव्ययी भाव
यावज्जीवन जीवनभर अव्ययी भाव
यथायोग्य योग्यता के अनुसार अव्ययी भाव
यथासम्भव सम्भव के अनुसार अव्ययी भाव
यथोचित औचित्य के अनुसार अव्ययी भाव
यज्ञवेदी यज्ञ के लिए वेदी सम्प्रदान तत्पुरूष
यथेष्ट यथा ईष्ट अव्ययी भाव
रामकृष्ण राम और कृष्ण द्वन्द्व
राधाकृष्ण राधा और कृष्ण द्वन्द्व
राग-द्वेष राग या द्वेष द्वन्द्व
राजा-रानी राजा और रानी द्वन्द्व
राजदूत राजा का दूत सम्बन्ध तत्पुरूष
राजदरबार राजा का दरबार सम्बन्ध तत्पुरूष
राजभवन राजा का भवन सम्बन्ध तत्पुरूष
राजद्रोह राज्य से द्रोह अपादान तत्पुरूष
राजवैद्य राजा का वैद्य सम्बन्ध तत्पुरूष
राजगृह राजा का गृह सम्बन्ध तत्पुरूष
रोगमुक्त रोग से मुक्त अपादान तत्पुरूष
रेलभाड़ा रेल के लिए भाड़ा सम्प्रदान तत्पुरूष
रसोईघर रसोई के लिए घर सम्प्रदान तत्पुरूष
रसभरी रस से भरी करण तत्पुरूष
रोगपीड़ित रोगों से पीड़ित करण तत्पुरूष
रेखांकित रेखा से अंकित करण तत्पुरूष
रामायण राम का अयन सम्बन्ध तत्पुरूष
लौहपुरूष लौह के समान दृढ़ है जो पुरूष कर्मधारय
लम्बोदर लम्बा है उदर जिसका वह अर्थात् गणेशजी बहुव्रीहि
लेन-देन लेन और देन द्वन्द्व
लूट-खसोट लूटना और खसोटना द्वन्द्व
वक्रतुण्ड वक्र है तुण्ड जिसकी वह अर्थात् गणेशजी बहुव्रीहि
वज्रायुध वज्र है आयुध जिसका वह अर्थात् इन्द्र बहुव्रीहि
वीरबाला वीर है जो बाला कर्मधारय
विद्याहीन विद्या से हीन अपादान तत्पुरूष
वीणापाणि वीणा है जिसके हाथ में अर्थात सरस्वती बहुव्रीहि
शोकग्रस्त शोक ग्रस्त करण तत्पुरूष
शरणागत शरण में आगत अधिकरण तत्पुरूष
शिलालेख शिला पर लिखा लेख अधिकरण तत्पुरूष
शैलोन्नत उन्नत है जो शैल कर्मधारय
शुभागमन शुभ है जो आगमन कर्मधारय
शूलपाणि शूल ‘त्रिशुल’ है जिसके हाथ में अर्थात शिवजी बहुव्रीहि
शुभ्रवासना शुभ्र है वस्त्र जिसके वह अर्थात सरस्वती बहुव्रीहि
श्यामसुन्दर सुन्दर है जो श्याम वह अर्थात श्रीकृष्ण बहुव्रीहि
शीतोष्ण शीत और उष्ण द्वन्द्व
षड़_तु छः _तुओं का समाहार द्विगु
षड़ानन छः है मुख जिसके वह अर्थात कार्तिकेय बहुव्रीहि
स्वर्गप्राप्त स्वर्ग को प्राप्त कर्मधारय
स्नानघर स्नान के लिए घर सम्प्रदान तत्पुरूष
स्नेह मग्न स्नेह में मग्न अधिकरण तत्पुरूष
सभाभवन सभा के लिए भवन सम्प्रदान तत्पुरूष
सेनापति सेना का पति सम्बन्ध तत्पुरूष
सद्भावना सत् है जो भावना कर्मधारय
सन्मार्ग सत् है जो मार्ग कर्मधारय
सत्परामर्श सत् है जो परामर्श कर्मधारय
सुमति अच्छी है जो मति कर्मधारय
सहस्राक्ष सहस्र है आँखें जिसके वह अर्थात इन्द्र बहुव्रीहि
सिंहवाहिनी सिंह है वाहन जिसका वह अर्थात दुर्गा बहुव्रीहि
सप्तशती सात सौ छन्दों का समाहार द्विगु
सहस्राब्दी हजारों वर्षों का समय द्विगु
सुख-दुख सुख और दुख द्वन्द्व
सेठ-साहूकार सेठ और साहूकार द्वन्द्व
हानि-लाभ हानि और लाभ द्वन्द्व
हंसवाहिनी हंस है वाहन जिसका वह अर्थात सरस्वती बहुव्रीहि
हरघड़ी प्रत्येक घड़ी अव्ययी भाव
क्षत्रियाधम क्षत्रियों में अधम सप्तमी तत्पुरूष
त्रिकोण तीन कोणों का समाहार द्विगु
त्रिदेव तीन देवों का समाहार द्विगु
त्रिवेदी तीन वेदों का समाहार द्विगु
त्रिलोक तीन लोकों का समूह द्विगु
त्रिभुवन तीन भुवनों का समूह द्विगु
त्रिफ़ला तीन फ़लों ‘हर्र, बहेड़ा, आंवला’ द्विगु
त्रिनेत्र तीन है नेत्र जिसके वह अर्थात शिवजी बहुव्रीहि
त्रिपुरारि त्रिपुर का है शत्रु जो वह अर्थात शिवजी बहुव्रीहि

Samas aur Samas vigrah
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द ‘तत्पुरूष समास’ का उदाहरण है?
(a) जन्मान्धा (b) आजन
(c) नीलकमल (d) सप्तसिंधु
2.निम्नलिखित किस शब्द में समास है?
(a) राज्याधयक्ष (b) राजा-रानी
(c) यथाशक्ति (d) उपर्युक्त सभी में
3.‘हाथोंहाथ’ में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव समास (b) तत्पुरूष समास
(c) द्विगु समास (d) कर्मधारय समास
4.रात-दिन में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव (b) तत्पुरुष
(c) बहुव्रीहि (d) द्वन्द्व
5.‘नीलकमल’ में कौन-सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) कर्मधारय
(c) द्वन्द्व (d) अधिकरण
6.दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नऐ सार्थक शब्द को क्या कहते हैं?
(a) सर्वनाम (b) समास
(c) अलंकार (d) छंद
7.समास का शाब्दिक अर्थ होता है-
(a) संक्षेप (b) विस्तार
(c) विग्रह (d) विच्छेद
8.निम्नांकित में कौन-सा पद अव्ययीभाव समास है?
(a) नर-नारी (b) नीलकंठ
(c) प्रतिदिन (d) धर्मवीर
9.जिस समास में उत्त्र-पद प्रधान होने के साथ ही साथ पूर्व-पद तथा उत्त्र-पद में विशेषण-विशेष्य का संबंध भी होता है, उसे कौन-सा समास कहते है?
(a) बहुव्रीहि (b) कर्मधारय
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
10.निम्नलिखित में से कर्मधारय समास किसमें है?
(a) चक्रपाणि (b) चतुर्युगम्
(c) नीलोत्पलम् (d) माता-पिता
11.जिस समास के दोनों पद अप्रधान होते हैं, वहाँ पर कौन-सा समास होता है?
(a) अव्ययीभाव (b) तत्पुरुष
(c) कर्मधारय (d) बहुव्रीहि
12.‘जितेन्द्रिय’ में कौन-सा समास है?
(a) द्विगु (b) बहुव्रीहि
(c) अव्ययीभाव (d) कर्मधारय
13.‘देवासुर’ में कौन-सा समास है?
(a) सम्प्रदान तत्पुरुष (b) अव्ययीभाव
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
14.‘देशांतर’ में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव (b) द्विगु
(c) द्वन्द्व (d) कर्मधारय
15.‘दीनानाथ’ में कौन-सा समास है?
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
16.‘मुख-दर्शन’ में कौन-सा समास है?
(a) द्विगु (b) तत्पुरूष
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
17.कौन-सा शब्द बहुव्रीहि समास का सही उदाहरण है?
(a) निशिदिन (b) त्रिभुवन
(c) पंचानन (d) पुरूषसिंह
18.‘निशाचर’ में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव (b) कर्मधारय
(c) नञ् (d) बहुव्रीहि
19.‘चौराहा’ में कौन-सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरूष
(c) अव्ययीभाव (d) द्विगु
20.‘दशमुख’ में कौन-सा समास है?
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि
(c) तत्पुरूष (d) द्विगु
21.‘सुपुरुष’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) अव्ययीभाव
(c) कर्मधारय (d) द्वन्द्व
22.विशेषण और विशष्य के योग से कौन-सा समास बनता है?
(a) द्विगु (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) तत्पुरुष
23.निम्नलिखित मे से एक शब्द में द्विगु समास है, उस शब्द का चयन कीजिए-
(a) लंबोदर (b) नीलकंठ
(c) सप्ताह (d) शिवालय
24.किस समास के दोनों शब्दों के समानाधिकरण होने पर कर्मधारय समास होता है?
(a) तत्पुरुष (b) द्वन्द्व
(c) द्विगु (d) बहुव्रीहि
25.किसमें सही सामासिक पद है?
(a) पुरूषधन्वी (b) दिवारात्रि
(c) त्रिलोकी (d) मंत्रिपरिषद
26.द्विगु समास का उदाहरण कौन-सा है?
(a) गगनचुंबी (b) पंकज
(c) मदांध (d) त्रिभुवन
27.इनमें से द्वन्द्व समास का उदाहरण है-
(a) दशानन (b) देहलता
(c) चिड़िमार (d) रुपया-पैसा
28.अव्ययीभाव समास का एक उदाहरण ‘यथाशक्ति’ का सही विग्रह क्या होगा?
(a) जैसी-शक्ति (b) जितनी शक्ति
(c) शक्ति के अनुसार (d) यथा जो शक्ति
29.‘पाप-पुण्य’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) द्वन्द्व
(c) अव्ययीभाव (d) कर्मधारय
30.‘लम्बोदार’ में कौन-सा समास है?
(a) द्वन्द्व (b) द्विगु
(c) तत्पुरुष (d) बहुव्रीहि
31.‘देशप्रेम’ में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव (b) तत्पुरुष
(c) द्विगु (d) बहुव्रीहि
32.‘परमेश्वर’ में कौन-सा समास है?
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
33.‘अनायास’ में कौन-सा समास है?
(a) नञ् (b) द्वन्द्व
(c) द्विगु (d) अव्ययीभाव
34.‘गोशाला’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) द्विगु
35.‘नवग्रह’ में कौन-सा समास है?
(a) द्विगु (b) तत्पुरूष
(c) द्वन्द्व (d) कर्मधारय
36.‘विद्यार्थी’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) बहुव्रीहि (d) द्विगु
37.‘कन्यादान’ में कौन-सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरुष
(c) द्विगु (d) कर्मधारय
38.‘साग-पात’ में कौन-सा समास है?
(a) अव्ययीभाव (b) द्विगु
(c) कर्मधारय (d) द्वन्द्व
39.‘नीलकमल’ में कौन-सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरुष
(c) कर्मधारय (d) द्विगु
40.‘चतुर्भुज’ में कौन-सा समास है?
(a) द्वन्द्व (b) बहुव्रीहि
(c) तत्पुरुष (d) कर्मधारय
41.‘भाई-बहन’ में कौन-सा समास है?
(a) द्वन्द्व (b) बहुव्रीहि
(c) द्विगु (d) तत्पुरुष
42.‘वनवास’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
43.‘पंचवटी’ में कौन-सा समास है?
(a) द्विगु (b) बहुव्रीहि
(c) तत्पुरुष (d) कर्मधारय
44.‘पीताम्बर’ में कौन-सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) द्विगु
45.‘नरोत्त्म’ में कौन-सा समास है?
(a) कर्मधारय (b) तत्पुरुष
(c) अव्ययीभाव (d) द्वन्द्व
46.‘आजन्म’ शब्द__________का उदाहरण है?
(a) अव्ययीभाव (b) तत्पुरुष
(c) द्वन्द्व (d) द्विगु
47.‘युधिष्ठिर’ में कौन-सा समास है?
(a) तत्पुरुष (b) बहुव्रीहि
(c) अलुक् (d) कर्मधारय
48.जिस समास के दोंनो पद अप्रधान होते हैं, वहाँ पर कौन-सा समास होता है?
(a) द्वन्द्व समास (b) द्विगु समास
(c) तत्पुरुष समास (d) बहुव्रीहि समास
49.किस समास के दोनों शब्दों को समानाधिाकरण होने पर कर्मधारय समास होता है?
(a) तत्पुरुष (b) द्वन्द्व
(c) द्विगु (d) बहुव्रीहि
50.विशेषण और विशेष्य के योग से कौन-सा समास बनता है?
(a) द्विगु (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) तत्पुरुष
51.जब प्रथम शब्द संख्यावाची और दूसरा शब्द संज्ञा हो, तब कौन-सा समास होगा?
(a) द्वन्द्व (b) तत्पुरुष
(c) द्विगु (d) अव्ययीभाव
52.‘समास’ शब्द का अर्थ है-
(a) संक्षेप (b) व्यास
(c) टिप्पणी (d) सार
53.निम्नलिखित में से द्वन्द्व समास किस शब्द में है?
(a) पाप-पुण्य (b) धड़ाधड़
(c) कलाप्रवीण (d) त्रिभुवन
54.जिस समास में उत्तर पद प्रधान होने के साथ ही साथ पूर्व तथा उत्त्र पद में विशषण-विशेष्य का संबंध भी होता है, उसे कौन-सा समास कहते हैं?
(a) बहुव्रीहि समास (b) कर्मधारय समास
(c) तत्पुरुष समास (d) द्वन्द्व समास
55.निम्नलिखित में से एक शब्द में द्विगु समास है, उस शब्द का चयन कीजिए-
(a) महादेव (b) स्नानघर
(c) सप्ताह (d) लालमणी
56.कौन-सा शब्द बहुव्रीहि समास का सही उदाहरण है?
(a) गुणहीन (b) नवरात्र
(c) पंचानन (d) प्राणप्रिय
57.द्विगु समास का उदाहरण कौन-सा है?
(a) अनन्य (b) दिन-रात
(c) चतुरानन (d) त्रिभुवन
58.इनमें से द्वन्द्व समास का उदाहरण कौन-सा है?
(a) पीताम्बर (b) नेत्रहीन
(c) चौराहा (d) रुपया-पैसा
59.निम्न में से कर्मधारय समास किसमें है?
(a) चक्रपाणिः (b) चतुर्युगम
(c) नीलोत्पलम् (d) माता-पिता
60.अव्ययीभाव समास का एक उदाहरण ‘यथा-शक्ति’ का सही विग्रह क्या होगा?
(a) जैसी शक्ति (b) जितनी शक्ति
(c) शक्ति के अनुसार (d) यथा जो शक्ति
61.देशप्रेम-
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
62.जितेन्द्रिय-
(a) द्वन्द्व (b) बहुव्रीहि
(c) तत्पुरुष (d) कर्मधारय
63.अनायास-
(a) तत्पुरुष (b) द्वन्द्व
(c) द्विगु (d) अव्ययीभाव
64.प्रतिदिन-
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) अव्ययीभाव (d) द्विगु
65.गोशाला-
(a) तत्पुरूष (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) द्विगु
66.परमेश्वर-
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
67.धक्का-मुक्की
(a) कर्मधारय (b) द्विगु
(c) द्वन्द्व (d) तत्पुरूष
68.निशाचर-
(a) कर्मधारय (b) तत्पुरुष
(c) बहुव्रीहि (d) अव्ययीभाव
69.गगनचुम्बी-
(a) बहुव्रीहि (b) अव्ययीभाव
(c) द्विगु (d) कर्मधारय
70.दीनानाथ-
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
71.देवासुर-
(a) बहुव्रीहि (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) द्वन्द्व
72.राजपुरूष-
(a) कर्मधारय (b) द्विगु
(c) तत्पुरूष (d) द्वन्द्व
73.नवग्रह-
(a) द्विगु (b) तत्पुरुष
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
74.देशांतर-
(a) कर्मधारय (b) द्विगु
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
75.चौराहा-
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरुष
(c) अव्ययीभाव (d) द्विगु
76.त्रिफ़ला-
(a) द्वन्द्व (b) अव्ययीभाव
(c) द्विगु (d) कर्मधारय
77.विधार्थी-
(a) तत्पुरुष (b) बहुव्रीहि
(c) कर्मधारय (d) द्विगु
78.सुपुरुष-
(a) तत्पुरुष (b) अव्ययीभाव
(c) कर्मधारय (d) द्वन्द्व
79.तन-मन-धन
(a) अव्ययीभाव (b) कर्मधारय
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
80.लम्बोदर-
(a) द्वन्द्व (b) द्विगु
(c) बहुव्रीहि (d) कर्मधारय
81.दशमुख-
(a) कर्मधारय (b) बहुव्रीहि
(c) तत्पुरुष (d) द्विगु
82.पाकिटमार-
(a) कर्मधारय (b) द्वन्द्व
(c) बहुव्रीहि (d) तत्पुरूष
83.पाप-पुण्य
(a) कर्मधारय (b) द्वन्द्व
(c) तत्पुरुष (d) बहुव्रीहि
84.मुख-दर्शन
(a) द्विगु (b) तत्पुरुष
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
85.हरुनमौला-
(a) अव्ययीभाव (b) तत्पुरुष
(c) कर्मधारय (d) बहुव्रीहि
86.विश्वम्भर-
(a) द्वन्द्व (b) बहुव्रीहि
(c) अव्ययीभाव (d) तत्पुरुष
87.कन्यादान-
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरुष
(c) द्विगु (d) कर्मधारय
88.हानि-लाभ
(a) कर्मधारय (b) तत्पुरुष
(c) द्वन्द्व (d) द्विगु
89.साग-पात
(a) अव्ययीभाव (b) द्विगु
(c) कर्मधारय (d) द्वन्द्व
90.राजपुत्र
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) द्वन्द्व (d) बहुव्रीहि
91.दिन-रात
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) द्वन्द्व
92.त्रिभुवन
(a) द्विगु (b) द्वन्द्व
(c) कर्मधारय (d) तत्पुरुष
93.पुरुषोत्त्म
(a) द्वन्द्व (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) द्विगु
94.पीताम्बर
(a) तत्पुरुष (b) अव्ययीभाव
(c) बहुव्रीहि (d) द्विगु
95.चरणकमल
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) बहुव्रीहि (d) अव्ययीभाव
96.घुड़सवार
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरुष (d) अव्ययीभाव
97.चौराहा
(a) द्विगु (b) अव्ययीभाव
(c) तत्पुरुष (d) बहुव्रीहि
98.गर्वशून्य
(a) कर्म-तत्पुरुष (b) संप्रदान-तत्पुरुष
(c) करण-तत्पुरुष (d) अहुव्रीहि
99.अभूतपूर्व में समास है –
(a) अव्ययीभाव (b) बहुव्रीही
(c) तत्पुरूष (d) द्वंद्व
100.निम्न में अव्ययी भाव समास का उदाहरण नहीं है-
(a) परोक्ष (b) धीरे-धीर
(c) अग्नि भक्षी (d) भर पेट
101.‘शरच्चन्द्र’ कौन सा समास है?
(a) बहुव्रीहि (b) कर्मधारय
(c) तत्पुरूष (d) द्विगु
102.राधा – कृष्ण कौनसा समास है?
(a) कर्मधारय (b) अव्ययीभाव
(c) तत्पुरुष (d) द्वन्द्व
103.अव्ययीभाव समास में।
(a) उत्तर पद प्रधान होता है
(b) पूर्व पद प्रधान होता है
(c) दोनों पद प्रधान होते हैं
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं
104.समास मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं?
(a) चार (b) सात
(c) पाँच (d) आठ
105.किस समास में दोनों पद प्रधान होते हैं?
(a) द्वन्द्व (b) द्विगु
(c) अव्ययीभाव (d) कर्मधारय
106.किस समास में पूर्व पद प्रधान होते हैं?
(a) बहुव्रीहि (b) तत्पुरूष
(c) अव्ययी भाव (d) द्वन्द्व
107.कौनसे दो समास तत्पुरुष के अंतर्गत माने जाते हैं?
(a) द्विगु और बहुव्रीहि (b) द्विगु और द्वन्द्व
(c) द्विगु और अव्ययीभाव (d) द्विगु और कर्मधारय
108.आजीवन कौनसा समास है?
(a) द्विगु (b) कर्मधारय
(c) अव्ययीभाव (d) तत्पुरूष
109.‘दहीबड़ा’ किस समास का उदाहरण है?
(a) तत्पुरुष (b) कर्मधारय
(c) द्विगु (d) द्वन्द्व
110.‘नवग्रह’ किस समास का उदाहरण है?
(a) द्विगु (b) बहुव्रीहि
(c) अव्ययीभाव (d) कर्मधारय
Samas aur Samas vigrah उत्तरमाला
1.(a) 2.(d) 3.(a) 4.(d) 5.(b) 6.(b) 7.(a) 8.(c) 9.(b) 10.(c) 11.(d) 12.(b) 13.(d) 14.(c)
15.(a) 16.(b) 17.(c) 18.(d) 19.(d) 20.(b) 21.(c) 22.(c) 23.(c) 24.(a) 25.(b) 26.(d) 27.(d) 28.(c)
29.(b) 30.(c) 31.(b) 32.(b) 33.(a) 34.(a) 35.(a) 36.(a) 37.(b) 38.(d) 39.(c) 40.(c) 41.(a) 42.(a)
43.(a) 44.(a) 45.(b) 46.(a) 47.(b) 48.(d) 49.(a) 50.(c) 51.(c) 52.(a) 53.(a) 54.(b) 55.(c) 56.(c)
57.(d) 58.(d) 59.(c) 60.(c) 61.(c) 62.(b) 63.(d) 64.(c) 65.(a) 66.(b) 67.(c) 68.(b) 69.(b) 70.(a)
71.(d) 72.(a) 73.(a) 74.(a) 75.(d) 76.(c) 77.(b) 78.(c) 79.(d) 80.(c) 81.(b) 82.(d) 83.(b) 84.(b)
85.(b) 86.(d) 87.(b) 88.(c) 89.(d) 90.(a) 91.(d) 92.(a) 93.(c) 94.(c) 95.(b) 96.(c) 97.(a) 98.(c)
99.(a) 100.(a) 101.(b) 102.(d) 103.(b) 104.(a) 105.(a) 106.(c) 107.(d) 108.(c) 109.(a) 110.(a) 111.(c)
112.(d) 113.(c) 114.(c)
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