Environmental Accounting or green Accounting

पर्यावरण लेखांकन (Environmental Accounting) या green Accounting  (ग्रीन एकाउंटिंग )  ऐसा शब्द है जिसका उपयोग प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग या कमी को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय लेखा प्रणाली के संशोधन को संदर्भित करता है या पर्यावरणीय लेखांकन प्राकृतिक संसाधनों के पर्यावरणीय और परिचालन लागत के प्रबंधन में सहायता करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। पर्यावरण लेखांकन सकल घरेलू उत्पाद जैसे आर्थिक संकेतकों के जवाब में प्रयोग किया जा सकता हैं, जिनकी गणना इस बात के बिना की जाती है कि प्राकृतिक संसाधनों, पारिस्थितिक तंत्र, वायु की गुणवत्ता और इतने पर पर्यावरण को कैसे प्रभावित किया जाए। पर्यावरण लेखांकन, जिसे ग्रीन अकाउंटिंग भी कहा जाता है।

  • मार्च 2021 में संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी आयोग ने एक नए लेखांकन ढांचे को शुरू किया है जो राष्ट्रों को नीतिगत निर्णयों तथा आर्थिक योजना के निर्माण में सतत विकास को शामिल करने के लिए प्रेरित करेगा भारत उन 90 देशों में से एक है। जो पर्यावरणीय हास से निपटने के लिए अपने घरेलू सांख्यिकीय ढांचे में इसे शामिल करके पर्यावरण आर्थिक लेखांकन प्रणाली को अपनाने के पक्ष में है।
  • उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, पर्यावरणीय लेखांकन, इसको प्रगति, चुनौतियों तथा अन्य संबंधित मुद्दों के संदर्भ में स्पष्ट समझ बनाना महत्वपूर्ण हो जाता है।

पर्यावरणीय-लेखांकन अर्थ

पर्यावरणीय लेखांकन का उद्देश्य सतत विकास प्राप्त करना, सामुदायिक अनुकूलन को बनाए रखना तथा प्रभावी एवं कुशल पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों को आगे बढ़ाना है। पर्यावरणीय लेखांकन की आरंभिक प्रक्रिया यूरोपीय देशों से आरंभ हुई तथा इसे आरंभ करने वाले देशों में नौवें को सर्वप्रमुख माना जा सकता है। पर्यावरणीय लेखांकन को कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • इस प्रकार की लेखांकन प्रक्रियाएं किसी कंपनी को उसकी व्यावसायिक गतिविधियों के दौरान पर्यावरण संरक्षण की लागत की पहचान करने तथा ऐसी गतिविधियों से प्राप्त लाभ की पहचान करने एवं मात्रात्मक माप (मौद्रिक मूल्य या भौतिक इकाइयों में) का सर्वोत्तम संभव साधन प्रदान करती हैं।
  • पर्यावरणीय लेखांकन के माध्यम से संसाधनों के उपयोग के निर्धारण, उनके मापन तथा पर्यावरण पर किसी भी देश एवं कंपनी के आर्थिक प्रभावों का आकलन किया जा सकता है।
  • पर्यावरणीय लेखांकन, ‘पर्यावरणीय दशाओं की सूचना लागतों (Environmental Information Costs) की पहचान, माप एवं वितरण का पता लगाने में मदद करता है। साथ ही, पर्यावरणीय लागतों को व्यावसायिक निर्णयों में एकीकृत करके कंपनी तथा पर्यावरण के सर्वोत्तम हितधारक की भूमिका निभाता है।

पर्यावरणीय लेखांकन के प्रमुख चरण

किसी भी संस्था अथवा संगठन की पर्यावरण के संदर्भ में गुणवत्ता का पता लगाने के लिए विभिन्न अध्ययनों के आधार पर 6 चरणों को पहचान की गई है। इनका उपयोग करके किसी भी संस्था द्वारा पर्यावरणीय लेखांकन को सुचारू रूप से संपादित किया जा सकता है।

  • पहचान (Identification): पर्यावरणीय लेखांकन प्रक्रिया में पहला कदम पर्यावरणीय रिपोर्टिंग करने वाले मानदंड की पहचान करना होता है। प्रत्येक संगठन अपनी आवश्यकताओं के अनुसार पर्यावरणीय मानदंडों को परिभाषित करता है। इन्हें व्यर्यावरण नीति, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरणीय स्थिरता कार्यक्रम, स्थिरता निगरानी’ आदि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • वर्णन (Describe): पर्यावरणीय रिपोर्टिंग मापदंडों को परिभाषित करते समय, पर्यावरणीय लेखांकन प्रक्रिया के दूसरे चरण में संगठनों को अपने द्वारा निर्धारित प्रत्येक घटक के परिचालन अर्थको स्पष्ट रूप से बताने की आवश्यकता होती है। यह चरण उन्हें दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रदर्शन को मापने में मदद करता है।
  • विशिष्टता (Specification): अगला चरण पर्यावरणीय लक्ष्यों की पहचान करना होता है। संगठन द्वारा अल्पकालिक लक्ष्यों के साथ-साथ दीर्घकालिक पर्यावरणीय लक्ष्यों को भी निर्धारित किया जाना चाहिए।
  • विकास (Development): पर्यावरण का प्रदर्शन करने वाले संकेतकों का निर्माण करना, पर्यावरणीय लेखांकन में एक महत्वपूर्ण कदम होता है। इसके अंतर्गत पर्यावरण नीति की संरचना, अपनाए जाने वाले स्वास्थ्य और सुरक्षा मानक, लागू की जाने वाली ऊर्जा संरक्षण रणनीतियां, डिजाइन किए जाने वाले अपशिष्ट एवं जल प्रबंधन नीतियों को शामिल किया जाता है।
  • मापन (Measurement): पर्यावरण का प्रदर्शन करने वाले पारंपरिक संकेतकों के साथ-साथ वास्तविक पर्यावरणीय प्रदर्शन का मापन करना अत्यंत ही आवश्यक होता है। यह मापन प्रकृति में गुणात्मक अथवा मात्रात्मक हो सकता है।
  • रिपोर्ट तैयार करना (Report Generation): पर्यावरणीय लेखांकन का अंतिम चरण पर्यावरणीय प्रदर्शन परिणाम के दस्तावेज को तैयार करना है।

भारत में पर्यावरण से सम्बंधित संवेधानिक एवं कानूनी उपाय

  • भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत शामिल किए गए अनुच्छेद 51क (छ) [Article 51 A (g)) के अनुसार ‘वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार करना और प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखना प्रत्येक भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी है।”
  • देश में पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक प्रकार के कानूनों का निर्माण किया गया है इनमें मुख्य रूप से कारखाना अधिनियम-1948 प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण अधिनियम-1974; वन (संरक्षण) अधिनियम-1980; वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम-1981; जल जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन और संचालन) नियम-1998; नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम-2000; ओजोन क्षयकारी पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम-2000; ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) (संशोधन) नियम-2002; जैविक विविधता अधिनियम-2002 शामिल हैं।
  • देश की स्वस्थ वातावरण प्रदान करने के लिए 1980 में भारत में पर्यावरण विभाग का गठन किया गया था। इसे 1985 में पर्यावरण और वन मंत्रालय का दर्जा प्रदान कर दिया गया। विकास की इसी कड़ी में भोपाल गैस त्रासदी के तुरंत बाद पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 को लागू किया गया जो वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण के सभी नियमों एवं अधिनियमों को प्रमुखता में शामिल करता है।
  • 21वीं सदी के प्रमुख सुधारों में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को लिया जा सकता है। इसके अंतर्गत कंपनी अधिनियम-2013 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि किसी कंपनी का शुद्ध मूल्य 500 करोड़ रुपये अथवा उससे अधिक होने पर कारोबार के 1000 करोड़ रुपये उससे अधिक होने पर अथवापिछले 3 वित्तीय वर्षों के दौरान शुद्ध लाभ 5 करोड़ अथवा उससे अधिक होने पर अधिनियम की धारा 135 के तहत कंपनी को अपने कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व का पालन करना होगा।
  • कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व जैसी पहलों का उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ-साथ सतत पर्यावरणीय विकास, पारिस्थितिक स्थिरता, वनस्पतियों और जीवों की सुरक्षा, कृषि वानिकी और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण को सुनिश्चित करना है साथ ही भूमि, वायु और पानी की गुणवत्ता बनाए रखना है।

पर्यावरणीय- लेखन से सम्बन्दित कुछ आधारभूत शब्द

  • वैश्विक पर्यावरणीय-लेखांकनः यह एक ऐसी लेखांकन पद्धति है जो वैश्विक स्तर पर पारिस्थितिकी तथा अर्थशास्त्र से संबंधित है। इसमें बृहद रूप में सौर ऊर्जा को पृथ्वी के ऊर्जा स्रोत के रूप में मानते हुए ऊर्जा के अनुक्रम तथा अपव्यय का आकलन किया जाता है।
  • राष्ट्रीय पर्यावरणीय-लेखांकनः राष्ट्रीय पर्यावरणीय लेखांकन राष्ट्रीय स्तर पर अर्थशास्त्र से संबंधित है। यह एक व्यापक आर्थिक उपाय है जो प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग एवं पर्यावरण पर राष्ट्रीय नीतियों के प्रभावों का आकलन करता है।
  • व्यावसायिक पर्यावरणीय लेखांकनः इसके अंतर्गत किसी संगठन की लागत संरचना को नियंत्रित करने तथा पर्यावरणीयप्रदर्शन को सुधारने पर बल दिया जाता है। इसे आगे, पर्यावरणीय प्रबंधन लेखांकन और पर्यावरण वित्तीय लेखांकन में उप विभाजित किया जा सकता है।
  • पर्यावरणीय प्रबंधन लेखांकनः यह पद्धति आंतरिक व्यापार रणनीतियों के संदर्भ में निर्णय लेने पर केंद्रित है। इसमें आंतरिक निर्णय लेने के लिए विभिन्न प्रकार को सूचनाओं की पहचान करके उनका संग्रह, विश्लेषण एवं उपयोग किया जाता है।
  • पर्यावरणीय वित्तीय लेखांकन: इसका उपयोग कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन पर बाहरी हितधारकों को आवश्यक जानकारी प्रदान करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार का लेखांकन कंपनियों को निवेशकों, उधारदाताओं और अन्य इच्छुक पार्टियों के लिए वित्तीय रिपोर्ट तैयार करने की अनुमति देता है।

भारत में पर्यावरणीय लेखांकन की प्रगति

भारत में पर्यावरणीय-लेखांकन की संकल्पना तथा इसके विधिक आयाम प्रगतिशील अवस्था में हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत कंपनियों को उनकी स्थिति और वित्तीय प्रदर्शन के साथ-साथ संसाधनों एवं पर्यावरणीय संरक्षण का समय-समय पर मूल्यांकन का प्रावधान किया गया है।

  • वर्ष 2011 में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व में सुधार करने के लिए, कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने ‘कंपनियों की सामाजिक, पर्यावरणीय एवं आर्थिक जवाबदेही पर राष्ट्रीय स्वैच्छिक दिशानिर्देश’ (NVGs) जारी किये थे। कम्पनियों के इस राष्ट्रीय स्वैच्छिक दिशानिर्देश के अंतर्गत सिद्धांत 2 में कहा गया है कि कंपनियों को अपनी संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया में सुरक्षित तथा टिका वस्तुएं एवं सेवाएं प्रदान करनी चाहिए।”
  • राष्ट्रीय कंपनी स्वेच्छिक दिशानिर्देश के सिद्धांत 6 में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि ‘सभी व्यवसायियों को पर्यावरण के सम्मान तथा संरक्षण को समान महत्व प्रदान किया जाना चाहिए।’ राष्ट्रीय कंपनी स्वैच्छिक दिशानिर्देश, 2011 के अंतर्गत वर्णित कुछ प्रमुख वक्तव्य इस प्रकार हैं:
  • प्राकृतिक तथा मानव पूंजी का प्रयोग करके कचरे को एकत्रित करना, उसके नियंत्रण एवं पुनर्चक्रण के माध्यम से सामग्री के पुन: उपयोग को बनाए रखना।
  • कंपनियों को अपनी कार्यवाहियों के अंतर्गत प्रदूषण के निर्गमन के को रोकने एवं नियंत्रित करने के प्रयास शामिल किए जाने चाहिए। इनके द्वारा, समयबद्ध तरीके से पर्यावरणीय क्षति तथा लागत का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
  • निर्माण विधियों में हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देकर ऊर्जा कुशल विधियों का विकास किया जा सकता है। इससे स्थायी ऊर्जा आपूर्ति को सुनिश्चित करने के साथ पर्यावरणीय हास में कमी लाई जा सकती है।
  • संगठनों तथा कंपनियों को उनकी गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय जोखिमों का समय-समय पर मूल्यांकन करने के साथ प्राप्त होने वाले निष्कर्षो को निष्पक्ष तौर पर हितधारकों के सामने प्रकट करना चाहिए।
  • औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियों से संबंधित पर्यावरणीय जानकारी को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार द्वारा पहली सार्वजनिक घोषणा वर्ष 1991 के वित्तीय सुधारों को लागू किए जाने के तुरंत बाद जारी की गई थी।
  • पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के प्रस्ताव में यह कहा गया है कि सभी कंपनियां स्वच्छ प्रदूषण निवारण: प्रौद्योगिकियों, अपशिष्ट शमन, अपशिष्ट पुनर्चक्रण एवं उपयोग, पर्यावरण संरक्षण एवं पर्यावरणीय प्रभाव निवेश को अपनाने के लिए प्रस्तावित उपायों के विवरण का संक्षेप में खुलासा करेंगी।’मंत्रालय द्वारा उपरोक्त संदर्भ में पर्यावरणीय संकल्प तैयार करने के प्रति प्रतिबद्धता जताई गई है, जिसमें निम्नलिखित से संबंधित लेखांकन को शामिल किया जाना अपेक्षित है:-
  • प्रदूषण नियंत्रण के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की स्थिति।
  • ऊर्जा संरक्षण के लिए उठाए गए कदम
  • कच्चे माल के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास।
  • अपशिष्ट जल और अन्य अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन की प्रक्रिया ।
  • उत्पाद और सेवा की गुणवत्ता, निर्माण प्रक्रिया आदि में सुधार के लिए किए जाने वाले प्रयास ।

पर्यावरणीय लेखांकन के समक्ष चुनौतियां

आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरणीय संरक्षण के महत्व को हुए कहा कि पर्यावरणीय लेखन अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से आर्थिक विकास के आवश्यक स्तर को प्राप्त करने के लिए पर्यावरणीय काम तथा उसकी सहनशीलता की सीमा का अनुमान लगाया जा सकता है। अत: यह आवश्यक है कि पर्यावरण के लिए उचित दां का विकास किया जाए, जोगसूजन के मुद्दे पर समान रूप से दिशानिर्देश प्रदान कर सके।

  • कॉरपोरेट घरानो तथा विभिन्न संस्थाओं की रिपोर्टिंग के आधार पर लगता है कि प्रबंधक अपने शंगरभारको तथा आम जनता को समयबद्ध रूप में प्रकाशित होने वाली रिपोटों में संपूर्ण जानकारियां प्रदान नहीं करते हैं।
  • यह भी स्पष्ट है कि कंपनियों द्वारा रिपोर्ट की गई ऐसी अधिकांश पर्यावरणीय जानकारी गैर-वित्तीय रूप में दर्ज की जाती है। ऐसी जानकारियां कंपनी द्वारा किए गए प्रयासों का विवरण मात्र होती हैं जिन्हें पर्यावरणीय लेखांकन में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। अनेक मामलों में इस तरह की पहल के लिए खर्च की गई राशि और वित्तीय परिणामों पर इसके भौतिक प्रभाव की जानकारी पूरी तरह से गायब रहती है।
  • लेखांकन करने के लिए चयनित की गई कंपनियों की लेखांकन शैली तथा विषयवस्तु में व्यापक भिन्नता पाई जाती है। तुलनात्मक अध्ययन तथा सत्यापन की कमी की समस्या लगभग सभी लेखांकन प्रक्रियाओं में देखी जा सकती है। अतः यह महसूस किया जाता है कि एक विश्वसनीय लेखांकन प्रक्रिया के लिए ऐसी जानकारी को वित्तीय लेखांकन प्रक्रिया के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।
  • एक प्रमुख समस्या आंतरिक तथा बाह्य लागतों के एकीकरण करने के संदर्भ में भी दृष्टिगत होती है। आंतरिक लागतों के अंतर्गत कॉरपोरेट क्षेत्र द्वारा विभिन्न चरणों में किया गया निवेश शामिल रहता है तो वहीं दूसरी तरफ बाहा लागतों के अंतर्गत मृदा क्षरण, जैव विविधता की हानि, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा ठोस कचरे की समस्या जैसे पहलुओं को शामिल किया जाता है। उपरोक्त दोनों के एकीकरण के लिए एक विशिष्ट मौद्रिक आकलन प्रक्रिया को आवश्यकता होगी।
  • इसके अलावा, यह तय करना भी अत्यंत कठिन है कि एक विशिष्ट व्यावसायिक इकाई की स्थापना के कारण पर्यावरण को कितना नुकसान हुआ है। यह चुनौती मौजूदा पर्यावरणीय लेखांकन के ढांचागत विकास में बाधक है।

निष्कर्ष

एक आर्थिक व्यवस्था के अंतर्गत प्राकृतिक पर्यावरण द्वारा निभाई गई भूमिका को समझने के लिए पर्यावरणीय लेखांकन एक महत्वपूर्ण उपाय है। यह ऐसे आंकड़े प्रदान करता है, जिसमें आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों के योगदान के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण और संसाधन क्षरण पर लगी लागत भी शामिल रहती है।

  • अब तक के विकास को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पर्यावरणीय लेखांकन तथा रिपोर्टिंग संबंधी प्रथाएं भारत में प्रारंभिक चरण में हैं। कुछ मामलों में, भारतीय कॉरपोरेट घराने पर्यावरणीय संरक्षण के संदर्भ में निर्धारित किए गए नियमों और विनियमों का पालन करते हैं, किंतु अब तक पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन के स्तर को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय राज्य तथा कंपनियों के स्तर पर कोई स्पष्ट नीति का निर्माण नहीं किया जा सका है।
  • भारत में पर्यावरणीय लेखांकन की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए सरकार तथा व्यावसायिक घरानों को एक स्पष्ट तथा ठोसपर्यावरणीय लेखांकन नीति तैयार करनी होगी। आर्थिक प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाले प्रदूषण के नियंत्रण के लिए पर्याप्त कदम उठाने के साथ-साथ इनका लेखांकन किया जाना तथा समयबद्ध रूप में प्रकाशित करना अत्यंत आवश्यक है। आर्थिक विकास विकास तथा पर्यावरण संरक्षण वर्तमान समय की मांग है अत: इनके मापन के लिए उचित कार्यान्वयन तथा एक स्पष्ट लेखांकन प्रक्रिया की आवश्यकता है।