टॉपिक 1. जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पूर्व (NE) भारत में वर्षा पैटर्न | |
पाठ्यक्रम : भूगोल (GS:01): भारत एवं विश्व का भूगोल एवं जलवायु परिवर्तन | |
प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | पेरिस समझौता, यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप, SCEP, लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट |
मुख्य परीक्षा के के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | अमेरिका एवं भारत के बीच जलवायु परिवर्तन संबंधी विभिन्न पहलें तथा ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में एक विश्लेषण ने जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर-पूर्व (NE) भारत में वर्षा पैटर्न के बदलते स्वरूप को प्रदर्शित किया है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) को वर्ष 2008 में प्रधानमंत्री-जलवायु परिवर्तन परिषद नामक समिति द्वारा शुरू किया गया था। यह उन उपायों की पहचान करता है जो जलवायु परिवर्तन से प्रभावी ढंग से निपटने के साथ-साथ भारत के विकास उद्देश्यों को बढ़ावा देते हैं।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- उत्तर-पूर्व (NE) सामान्य रूप से मानसून के महीनों (जून-सितंबर) के दौरान भारी वर्षा प्राप्त करता है, लेकिन हाल के वर्षों में इसका वर्षा का पैटर्न परिवर्तित हो गया है।
- तीव्र बारिश के साथ बादल फटने जैसी घटनाओं के कारण इस क्षेत्र में बाढ़ आ जाती है, जिसके बाद सूखे की स्थिति लंबे समय तक शुष्क/कमज़ोर पड़ जाती है।
- 2018 में प्रकाशित एक शोध-पत्र में पाया गया कि वर्ष 1979 और 2014 के बीच उत्तर-पूर्व (NE) में मानसूनी वर्षा में 355 मिमी की कमी आई है।
- इसमें से 30-50 मिमी की कमी स्थानीय नमी के स्तर में गिरावट के कारण हुई।
- अपनी अनोखी टोपोलॉजी (Topology) और खड़ी ढलानों के कारण त्वरित मैदानी इलाकों में जल के प्रवेश के कारण इस क्षेत्र में नदी के प्रवाह पैटर्न में बदलाव की संभावना है।
- उत्तर-पूर्व (NE) का क्षेत्र ज़्यादातर पहाड़ी है और इसमें भारत-गंगा के मैदानों का विस्तार है, यह क्षेत्र क्षेत्रीय एवं वैश्विक जलवायु में परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है।
- पूर्वोत्तर भारत में मानसून-पूर्व (Pre-monsoon) और मानसून के समय को वर्षा ऋतु की संज्ञा दी जाती हैं।
- अधिकांश उत्तर-पूर्वी राज्यों में मानसून के दौरान होने वाली वर्षा दो दशकों में लंबी अवधि के औसत (LPA) से कम हो गई है।
- ब्रह्मपुत्र की उत्तरी दिशा के अधिकांश ज़िलों में वर्षा के दिनों की संख्या में कमी आई है।
- इसका आशय है कि अब कम दिनों में ही भारी बारिश देखने को मिलती है अर्थात् ‘भारी वर्षा दिवस’ बढ़ रहे हैं जिससे नदी में बाढ़ आने की संभावना काफी बढ़ जाती है।
- वर्षा पैटर्न को बदलने वाले कारक:
- नमी/आर्द्रता और सूखा दोनों एक साथ:
- वार्मिंग (Warming) का एक पहलू जो वर्षा को प्रभावित करता है, वह है भूमि का सूखना, जिससे शुष्क अवधि और सूखे की आवृत्ति एवं तीव्रता बढ़ जाती है।
- आर्द्रता की मात्रा में वृद्धि और सूखे की स्थिति का एक साथ होना वर्षा के पैटर्न को अप्रत्याशित तरीके से बदल देता है।
- यूरेशियाई क्षेत्र में हिमपात में वृद्धि:
- यूरेशियाई क्षेत्र में बढ़ी हुई बर्फबारी भी पूर्वोत्तर भारत में मानसूनी वर्षा को प्रभावित करती है क्योंकि यूरेशिया में अत्यधिक हिमपात के कारण इस क्षेत्र का वातावरण ठंडा हो जाता है, जो उत्तर-पूर्व भारत के वर्षा पैटर्न में परिवर्तन को और अधिक प्रभावित करता है जो अंततः इस क्षेत्र में कमज़ोर ग्रीष्मकालीन मानसून का कारण बनता है।
- प्रशांत दशकीय दोलन (PDO) में परिवर्तन:
- उपोष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर पर समुद्र की सतह का तापमान, जो एक चक्र में भिन्न होता है और जिसका प्रत्येक चरण एक दशक तक रहता है। इसका पीक हर 20 वर्ष में आता है जिसे प्रशांत दशकीय दोलन (POD) के रूप में जाना जाता है।
- इसका प्रभाव पूर्वोत्तर में मानसूनी बारिश पर पड़ सकता है।
- PDO भी ग्लोबल वार्मिंग से प्रभावित हो रहा है क्योंकि यह समुद्र की परतों के मध्य तापमान के अंतर को कम करता है।
- सौर कलंक अवधि:
- मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व में वर्षा पैटर्न एक सौर कलंक अवधि से दूसरे सौर कलंक अवधि में काफी भिन्न होता है, जो देश में कम दबाव के मौसमी गर्त की अंतर गहनता को प्रदर्शित करता है।
- सौर कलंक अवधि सूर्य की सतह पर बढ़ती और घटती गतिविधि की क्रमोत्तर अवधि है जो पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करती है।
- मानसून के दौरान उत्तर-पूर्व में वर्षा पैटर्न एक सौर कलंक अवधि से दूसरे सौर कलंक अवधि में काफी भिन्न होता है, जो देश में कम दबाव के मौसमी गर्त की अंतर गहनता को प्रदर्शित करता है।
- नमी/आर्द्रता और सूखा दोनों एक साथ:
- प्रभाव:
- बदलते वर्षा पैटर्न (विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान) नदियों के प्रवाह, हिमावरण की सीमा और पर्वतीय झरनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जो बदले में आजीविका, विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वन वनस्पति विकास, पशु और पक्षी आवास तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्र संबंधी पहलुओं पर प्रभाव डालते हैं।
- सुबनसिरी, दिबांग (ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियाँ) और ब्रह्मपुत्र आदि नदियों के अप्रत्याशित तरीके से पैटर्न बदलने के कुछ प्रमाण हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाली अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ वनरहित पहाड़ी ढलानों के साथ त्वरित मृदा क्षरण जैसी घटनाओं में वृद्धि करती हैं। इससे नदियों का सतही बहाव बढ़ जाता है और उनका मार्ग बदल जाता है।
- बदलते वर्षा पैटर्न (विशेष रूप से मानसून के मौसम के दौरान) नदियों के प्रवाह, हिमावरण की सीमा और पर्वतीय झरनों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, जो बदले में आजीविका, विशेष रूप से कृषि और मछली पकड़ने, वन वनस्पति विकास, पशु और पक्षी आवास तथा अन्य पारिस्थितिक तंत्र संबंधी पहलुओं पर प्रभाव डालते हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
टॉपिक 1. यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप (SCEP) | |
पाठ्यक्रम : अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS:02):द्विपक्षीय समूह और समझौते तथा भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते | |
प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | पेरिस समझौता, यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप, SCEP, लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट |
मुख्य परीक्षा के के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | अमेरिका एवं भारत के बीच जलवायु परिवर्तन संबंधी विभिन्न पहलें तथा ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिकी ऊर्जा मंत्रालय के साथ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान संशोधित ‘यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) को लॉन्च किया गया।
SCEP को वर्ष 2021 की शुरुआत में आयोजित ‘लीडर्स समिट ऑन क्लाइमेट’ में दोनों देशों द्वारा घोषित ‘यूएस-इंडिया क्लाइमेट एंड क्लीन एनर्जी एजेंडा 2030 पार्टनरशिप’ के तहत लॉन्च किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- यूएस-इंडिया एजेंडा 2030 पार्टनरशिप:
- इसका उद्देश्य पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिये मौजूदा दशक में इन कार्यों पर मज़बूत द्विपक्षीय सहयोग स्थापित करना है।
- यह साझेदारी दो मुख्य मार्गों के साथ आगे बढ़ेगी: सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी और जलवायु कार्रवाई एवं वित्त संग्रहण संवाद।
- भारत ने वर्ष 2018 में भारत-अमेरिका ऊर्जा वार्ता को ‘रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी’ तक बढ़ा दिया।
- संशोधित सामरिक स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी (SCEP):
- उभरते ईंधन (स्वच्छ ऊर्जा ईंधन) पर पाँचवें स्तंभ को जोड़ना।
- इसके साथ SCEP अंतर-सरकारी गठबंधन अब सहयोग के पाँच स्तंभों पर आधारित है- शक्ति और ऊर्जा दक्षता, तेल और गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सतत विकास, उभरते ईंधन।
- वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को प्राप्त करने में भारत का समर्थन करना है।
- जैव ईंधन पर एक नए भारत-अमेरिका कार्य बल (Task Force) की भी घोषणा की गई।
- भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु ऊर्जा सहयोग की समीक्षा:
- वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- भारत-अमेरिका परमाणु समझौते का एक प्रमुख पहलू यह था कि परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) ने भारत को एक विशेष छूट दी, जिसने उसे एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर करने में सक्षम बनाया।
- ‘गैस टास्क फोर्स’ का रूपांतरण:
- ‘यूएस-इंडिया गैस टास्क फोर्स’ को अब ‘यूएस-इंडिया लो एमिशन गैस टास्क फोर्स’ के रूप में जाना जाएगा।
- यह भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से कुशल एवं बाज़ार संचालित समाधानों को बढ़ावा देकर भारत की प्राकृतिक गैस नीति के साथ प्रौद्योगिकी एवं नियामक बाधाओं को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- ‘इंडिया एनर्जी मॉडलिंग फोरम’ का संस्थानीकरण:
- विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान और मॉडलिंग के लिये छह टास्क फोर्स का गठन किया गया है।
- इसमें कोयला क्षेत्र में एनर्जी डेटा मैनेजमेंट, लो कार्बन टेक्नोलॉजी और ऊर्जा ट्रांज़िशन पर विचार-विमर्श किया जाएगा।
- ‘(PACE)-R’ पहल के दायरे का विस्तार:
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा भारत की ओर से उन्नत स्वच्छ ऊर्जा (PACE)-R पहल के लिये साझेदारी के दूसरे चरण के हिस्से के रूप में स्मार्ट ग्रिड और ग्रिड स्टोरेज को शामिल करने पर सहमति व्यक्त की गई है।
- अमेरिका-भारत संबंधों पर हालिया पहल:
- मालाबार अभ्यास: ‘क्वाड’ समूह में शामिल देशों (भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) की नौसेनाओं ने अभ्यास के 25वें संस्करण में भाग लिया।
- ALUAV पर भारत-अमेरिका समझौता: भारत और अमेरिका ने एक एयर-लॉन्च मानव रहित हवाई वाहन (ALUAV) या ड्रोन को संयुक्त रूप से विकसित करने हेतु एक परियोजना समझौते (PA) पर हस्ताक्षर किये हैं जिसे एक विमान से लॉन्च किया जा सकता है।
- मुक्त व्यापार समझौते का मुद्दा: अमेरिकी प्रशासन ने यह संकेत दिया है कि भारत के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को बनाए रखने में उसकी अब कोई दिलचस्पी नहीं है।
- निसार (NISAR): राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) संयुक्त रूप से NISAR नामक SUV के आकार के उपग्रह को विकसित करने हेतु कार्य कर रहे हैं। यह उपग्रह एक टेनिस कोर्ट के लगभग आधे क्षेत्र में 0.4 इंच से भी छोटी किसी वस्तु की गतिविधि का अवलोकन करने में सक्षम होगा।
स्रोत: द हिंदू
टॉपिक 3. स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 | |
पाठ्यक्रम : शासन (GS:02): सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप | |
प्रारंभिक परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 |
मुख्य परीक्षा के के लिए महत्वपूर्ण बिंदु | SBM के भाग के रूप में अन्य योजनाएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II के तहत स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021 या ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण 2021 की शुरुआत की।
- इससे पहले मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 और 2019 में स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण का आयोजन किया गया था।
- वर्ष 2016 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) द्वारा प्रस्तुत किये गए स्वच्छ सर्वेक्षण शहरी 2021 की घोषणा की जानी है।
प्रमुख बिंदु
- स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2021:
- परिचय:
- गाँवों को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) प्लस का दर्जा देने की केंद्र की पहल के एक हिस्से के रूप में यह ग्रामीण भारत में स्वच्छता, सफाई और स्वच्छता की स्थिति का आकलन करता है।
- ओडीएफ-प्लस स्थिति का उद्देश्य ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन सुनिश्चित करना है तथा यह ओडीएफ स्थिति का उन्नयन है जिसमें पर्याप्त शौचालयों के निर्माण की आवश्यकता थी ताकि लोगों को खुले में शौच न करना पड़े।
- यह कार्य एक विशेषज्ञ एजेंसी द्वारा किया जाता है।
- कवरेज़:
- वर्ष 2021 के ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में इसमें 698 ज़िलों में फैले 17,475 गाँवों को कवर किया जाएगा।
- विभिन्न तत्त्वों को वेटेज:
- सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छता का प्रत्यक्ष निरीक्षण- 30%
- नागरिकों की प्रतिक्रिया- 35%
- स्वच्छता संबंधी मानकों पर सेवा स्तर की प्रगति- 35%
- परिचय:
- स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) चरण- II:
- परिचय:
- यह चरण-I के तहत उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है।
- सार्वभौमिक स्वच्छता कवरेज प्राप्त करने के प्रयासों में तेज़ी लाने के लिये भारत के प्रधानमंत्री ने 2 अक्तूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत की थी।
- मिशन के तहत भारत के सभी गाँवों, ग्राम पंचायतों, ज़िलों, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने ग्रामीण इलाकों में 100 मिलियन से अधिक शौचालयों का निर्माण करके महात्मा गांधी की 150वीं जयंती 2 अक्तूबर, 2019 तक खुद को “खुले में शौच मुक्त” (ओडीएफ) घोषित किया।
- SBM को क्रमशः शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय तथा जल शक्ति मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- केंद्रीय बजट 2021-22 में स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) 2.0 को पाँच साल, वर्ष 2021 से 2026 तक 1.41 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ लागू करने की घोषणा की गई थी।
- कार्यान्वयन:
- इसे 2020-21 से 2024-25 तक मिशन मोड में 1,40,881 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ लागू किया जाएगा।
- फंडिंग पैटर्न:
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाएगा।
- SLWM के लिये वित्तपोषण मानदंडों को युक्तिसंगत बनाया गया है और परिवारों की संख्या के स्थान पर प्रति व्यक्ति आधार पर बदल दिया गया है।
- उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालयी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के लिये केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न 90:10, अन्य राज्यों के लिये 60:40 और अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में 100% वित्तपोषण केंद्र द्वारा किया जाएगा।
- परिचय:
- SBM के भाग के रूप में अन्य योजनाएँ:
- गोबर-धन योजना:
- इसे जल शक्ति मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था। इस योजना का उद्देश्य बायोडिग्रेडेबल कचरे को संपीड़ित बायोगैस (CBG) में परिवर्तित करके किसानों की आय में वृद्धि करना है।
- व्यक्तिगत घरेलू शौचालय:
- घरेलू शौचालय निर्माण के लिये 15000 रुपए दिये जाते हैं।
- स्वच्छ विद्यालय अभियान:
- शिक्षा मंत्रालय ने एक वर्ष के भीतर सभी सरकारी स्कूलों में बालक और बालिकाओं के लिये अलग-अलग शौचालय उपलब्ध कराने के उद्देश्य से स्वच्छ विद्यालय अभियान शुरू किया।
- गोबर-धन योजना:
स्रोत: पी.आई.बी.

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